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  बूढ़े माता पिता का सम्मान :- किस तरह हमारे माँ बाप बचपन में अपनी सारी खुशियों को त्यागते हुए हमे पालते है बड़े करते है और हर बात का अच्छी तर...

 बूढ़े माता पिता का सम्मान :-



किस तरह हमारे माँ बाप बचपन में अपनी सारी खुशियों को त्यागते हुए हमे पालते है बड़े करते है और हर बात का अच्छी तरह से ख्याल करते है और कभी भी अपने बच्चो से दुखी भी नही होते है और यहाँ तक की उनकी हर शरारत और परेशान करने वाली बातो से तंग न होते है बल्कि उन्हें हर हाल में अच्छे बनने की राह में लगाये रहते है.
लेकिन जैसे वक्त के करवट के साथ समय बीतता जाता है और यही बच्चे बड़े बन जाते है पैसा कमाने लगते है और खुद को इतना बड़ा समझने लगते है की उन्हें अपने स्वार्थ के आगे कोई नही दिखता है ऐसे में उनके वही माँ बाप बोझ भी लगने लगते है और बुढ़ापे में माँ बाप की सेवा करने और उन्हें खुश करने के बजाय उनमे ही दोष निकालने लगते है ऐसे सन्तान होने ना होने के बराबर ही होते है जो बुढ़ापे में अपने माँ बाप की सेवा नही कर सकते है दो वक्त समय निकाल कर उन्हें साथ कुछ पल नही बिता सकते है ऐसे बच्चे माँ बाप के बुढ़ापे की लाठी बनने के बजाय उल्टा माँ बाप को बोझ समझने लगते है.
तो चलिए जिस प्रकार हमारे माँ बाप हमारे वजूद के कारण होते है फिर वही माँ बाप इन बच्चो के लिए बोझ लगने लगते है इसी सोच पर यह दिल को छु लेने वाली कहानी माँ बाप का सम्मान को पढ़ते है जिन्हें हम सभी बहुत बड़ी सीख ले सकते है.
एक 80 वर्षीय व्यक्ति अपने 45 वर्षीय उच्च शिक्षित बेटे के साथ अपने घर में सोफे पर बैठा था। अचानक उनकी खिड़की पर एक कौवा बैठ गया।
पिता ने अपने बेटे से पूछा, “यह क्या है?” बेटे ने जवाब दिया “यह एक कौवा है”। कुछ मिनटों के बाद, पिता ने अपने बेटे से दूसरी बार पूछा, “यह क्या है?” बेटे ने कहा “पिता, मैंने अभी आपको “यह एक कौवा है” कहा है। थोड़ी देर बाद, बूढ़े पिता ने फिर से अपने बेटे से तीसरी बार पूछा, यह क्या है? ”इस समय बेटे के स्वर में कुछ जलन महसूस हुई,
तब उसने अपने पिता से झुझलाते हुए बोला “यह एक कौवा है, एक कौवा”। थोड़ी देर बाद, पिता ने फिर से अपने बेटे से चौथी बार पूछा, “यह क्या है?”इस बार बेटा अपने पिता पर चिल्लाया, “आप मुझसे बार-बार एक ही सवाल क्यों पूछते रहते हैं, हालांकि मैंने आपको कई बता चुका हु की “यह एक कौवा है” क्या आप इसे समझ नहीं पा रहे हैं?
थोड़ी देर बाद पिता अपने कमरे में गए और एक पुरानी डायरी लेकर वापस आए, जिसे उन्होंने अपने बेटे के जन्म के बाद से बनाए रखा था। एक पेज खोलने पर, उन्होंने अपने बेटे को उस पेज को पढ़ने के लिए कहा। जब बेटे ने इसे पढ़ा, तो निम्नलिखित शब्द डायरी में लिखे गए थे,“आज मेरा तीन साल का छोटा बेटा सोफे पर मेरे साथ बैठा था,
जब खिड़की पर एक कौवा बैठा था। मेरे बेटे ने मुझसे 23 बार पूछा कि यह क्या है, और मैंने उसे 23 बार जवाब दिया कि यह एक कौवा था। मैंने उसे हर बार प्यार से गले लगाया और उसने मुझसे 23 बार फिर से वही सवाल पूछा। मुझे इस बात से बिल्कुल भी चिढ़ नहीं हुई कि मैंने अपने मासूम बच्चे के लिए प्यार महसूस किया है”।
जबकि छोटे बच्चे ने उससे 23 बार पूछा “यह क्या है”, पिता को 23 बार पूरे सवाल का जवाब देने में कोई जलन महसूस नहीं हुई और आज जब पिता ने अपने बेटे से सिर्फ 4 बार यही सवाल पूछा, तो बेटे को चिढ़ और गुस्सा महसूस हुआ,
इसे पढकर उस बेटे को अपने किये गये व्यवहार का पता चल गया था जिससे चलते अब वह मन ही मन ही बहुत शर्मिंदा हो रहा था शायद उसे अब किये गये अपने बूढ़े पिता के प्रति व्यवहार पता चल गया था इसलिए यदि आपके माता-पिता जब बुढ़ापे में होते है उन्हें न तो पीछे छोड़ें और न ही उन्हें एक बोझ के रूप में देखें,
बल्कि उनके साथ एक दयालु शब्द बोलें, शांत, आज्ञाकारी, विनम्र और उनके प्रति दयालु बनें। अपने माता-पिता के प्रति विचारशील रहें। आज इस बात को कहें, “मैं अपने माता-पिता को हमेशा खुश देखना चाहता हूं। जब से मैं छोटा बच्चा था, उन्होंने मेरी देखभाल की। उन्होंने हमेशा मुझ पर अपने निस्वार्थ प्रेम की वर्षा की है।
उन्होंने आज समाज में मुझे एक व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने के लिए तूफान और गर्मी को देखे बिना सभी पहाड़ों और घाटियों को पार किया ”। भगवान से प्रार्थना करें, “मैं अपने बूढ़े माता-पिता की सर्वोत्तम तरीके से सेवा करूंगा। मैं अपने प्यारे माता-पिता को सभी अच्छे और दयालु शब्द कहूंगा, चाहे वे कैसे भी व्यवहार करें।

दिल की दिल में ना रखें !  एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भावनाओं को प्रकट करने की बजाय उसे दबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता ह...


दिल की दिल में ना रखें

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि भावनाओं को प्रकट करने की बजाय उसे दबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है| ऐसा करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है| अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंनसिल्वेनिया में हुए इस अध्ययन में पाया गया कि जो युवा अपनी भावनाओं को दबाते हैं, उनकी प्रतिरक्षा कोशिकाओं के बैक्टीरिया के संपर्क में आने के कारण ज्यादा सूजन पैदा होने लगती है| इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है| यह अध्ययन साइकोसोमेटिक मेडिसिन जनरल में प्रकाशित हुआ है| यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर  हैनाह  स्चरीयर कहती हैं कि यह प्रभाव किसी के स्वास्थ्य पर एक या दो हफ्ते में नहीं पड़ता हैं, बल्कि कुछ सालों में इसका प्रभाव होता है|
आंखें सब कुछ कहती हैं|
आपकी आंखें देखकर बताया जा सकता है कि आप तनाव में है या नहीं| एक नए अध्ययन में पाया गया है कि आंखों की पुतलियों का फैलाव देखकर किसी व्यक्ति के तनाव के स्तर का पता लगाया जा सकता है | अमेरिका की 'यूनिवर्सिटी ऑफ मिसौरी' में असिस्टेंट प्रोफेसर जंग हयूप किम कहते हैं, "कई लोग, एक से अधिक कार्य करते हैं | इस दौरान उनकी मानसिक स्थिति का पता लगाने में आंखों की पुतलियों का फैलाव महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है | "इस अध्ययन के परिणामों के जरिए यह संभव होगा कि कैसे वर्किंग एनवायरमेंट को डिजाइन किया जाए, ताकि कर्मियों के बीच मानसिक तनाव को रोका जा सके | यह अध्ययन 'ह्यूमन कंप्यूटर जनरल' में प्रकाशित किया गया है|

रिश्तो के कितने साथ हैं आप, रिश्तो को जिंदा रखने के लिए उन्हें वक्त, इज्जत और इंपॉर्टेंस देना बहुत जरूरी है|
पति-पत्नी के रिश्ते को समझने के लिए हमेशा संवेदनशीलता की जरूरत होती है| संवेदनशील मन से ही इसे समझा जा सकता है| यह एक आसान रिश्ता जरूर है, लेकिन एक बार उलझ जाए तो सुलझाना आसान नहीं होता| कई बार सुलझाने की कोशिश में और उलझ जाता है| आज के दौर में जिंदगी बड़ी व्यस्त रहने लगी है| इस व्यस्त समय में अमूमन दंपति अपना मी टाइम भूलने लगे हैं| शेयरिंग न होने से दूरियां बढ़ने लगी है| जरा सा वक्त दांपत्य को बड़े खतरे से उबार सकता है| इसलिए जरूरी है कि रिश्ते के लिए समय निकालें| हम सब एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जब अक्सर नौकरी के लिए हमें अपना शहर छोड़कर किसी और शहर या महानगर को ठिकाना बनाना होता है| नौकरियों के लिए अपने शहरों से दूर दूसरे शहरों में बसे लोगों के सामाजिक संबंध भी उतने गहरे नहीं हो पाते | चूकि अन्य रिश्तो से कट जाते हैं, इसलिए भी पति-पत्नी की एक-दूसरे से अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं| वे अपेक्षाएं पूरी नहीं हो पाती, तो शिकायतें बढ़ने लगती है| इस रिश्ते के लिए और भी कुछ बातें जरूरी है| एक तो शिकायतों से बचना चाहिए और अगर शिकायतें  आएं, तो उस पर ध्यान देना जरूरी है| साथी की शिकायत को नजरअंदाज करना ठीक नहीं| हां, यह हो सकता है कि साथी की हर बात न  मानी जा सके, लेकिन उसकी शिकायत को धैर्य से सुना जा सकता है| इसलिए थोड़ा समय जरूर निकालें| यह ऐसा निवेश है, जो भविष्य में संबंधों को खुशगवार बनाए रखेगा| और हां, खुशी के बहाने जरूर खोजें| बर्थडे, मैरिज एनिवर्सरी जैसी तारीख  याद रखें| एक-दूसरे के महत्व का अहसास कराते रहने के लिए छोटे-छोटे गिफ्ट्स और अवसरों का बड़ा महत्व होता है| साथ घूमे और साथ-साथ सपने भी देखें|

क्या आप बच्चे को संगीत  सिखाते  हैं ? संगीत मनोरंजन है , ध्यान है , उदासी का साथी है | बच्चों के लिए संगीत वरदान है | तो फिर आप अपने बच...


क्या आप बच्चे को संगीत सिखाते हैं? संगीत मनोरंजन है, ध्यान है , उदासी का साथी है | बच्चों के लिए संगीत वरदान है | तो फिर आप अपने बच्चे को संगीत क्यों नहीं सिखाते ?
बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ संगीत सिखाने का विचार शायद सबको पसंद न आए , लेकिन अनेक अनुसंधानो में यह बात सिद्ध हो चुकी है कि संगीत बच्चों के मस्तिष्क को प्रखर करता है| संगीत सिर्फ मन बदलाव का माध्यम ही नहीं है , बल्कि यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभप्रद है , फिर चाहे वह भारतीय संगीत हो या पाश्चात्य | वैज्ञानिकों के मुताबिक जन्म के 1 साल तक बच्चे के मस्तिष्क तक यदि संगीत की मधुर धुन पहुंचती है , तो इसका असर होता है| संगीत से सुनने समझने और सीखने की शक्ति बढ़ती है, जिससे  वरबल आईक्यू, स्मरण शक्ति में तेजी आती है| देखा गया है कि जिस बच्चे का संगीत के प्रति झुकाव होता है, वह भाषा सीखने में पारंगत होता है| विशेषज्ञों के अनुसार, संगीत सीखने से बच्चों के मस्तिष्क का dkWVsZDl मजबूत होता है dkWVsZDl मस्तिष्क में रीजनिंग, थिंकिंग या इमैजिनेशन में मददगार होता है| अक्सर बच्चों को गणित का विषय अच्छा नहीं लगता, लेकिन संगीत सीखने से गणित में मदद मिलती है| न्यूरोसाइंटिस्ट नीना क्रॉस ने अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ एडवांसमेंट ऑफ साइंस की बैठक में बताया था कि संगीत सभी बच्चों को फायदा पहुंचाता है| इनमें डिस्लेक्सिया और ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे भी शामिल हैं| अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि वाद्ययंत्र बजाने से मस्तिष्क के निचले हिस्से ब्रेन स्टेम में प्रक्रिया शुरू हो जाती है| निष्कर्षों से पता चला है कि इंस्ट्रुमेंटल म्यूजिक से छात्रों में प्रैक्टिस करने के लिए अनुशासन विकसित होता है| कई शोधों के अनुसार, संगीत में रुचि लेना शरीर में डोपामाइन हार्मोन का स्त्राव करता है, जो व्यक्ति में जोश और प्रेरणा का संचार करता है| धीमी गति की धुन अर्थात बिना शब्दों वाला संगीत मन को शांति देता है, तनाव कम करता है, बढ़ी हुई हृदय गति में सुधार लाता है| इससे श्वास प्रक्रिया सामान्य होती है, बेचैनी में तुरंत आराम मिलता है| अच्छी नींद आती है, डर व  क्रोध में कमी आती है, मन प्रसन्न रहता है| शास्त्रीय या धीमी गति का संगीत और बांसुरी की धुन दिमाग को शांति व सुकून देती है| संगीत सुनने से शरीर के इम्यून, नर्वस सिस्टम और पाचन क्रिया पर अच्छा असर होता है| ऐसे में आपके मन में एक सवाल उठता है कि आखिर म्यूजिक को समझने का आसान तरीका क्या है? म्यूजिक को समझने का सीधा फार्मूला है- साउंड+रिदम+मेलोडी= म्यूजिक| पक्षियों की चहचहाट, नदियों के प्रभाव, पत्तियों को छूकर चलने वाली हवाओं में भी संगीत है, जिसे आप महसूस कर सकते हैं|
आजकल छोटे-छोटे बच्चे बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं| संगीत से उनको डिप्रेशन माइग्रेन जैसी बीमारियों से बचाया जा सकता है| म्यूजिक थेरेपी काफी पॉपुलर हो गई है| जो बच्चे चंचल होते हैं, उनके लिए  तो संगीत वरदान है| यदि वे संगीत में रुचि लेने लगे तो उनकी एकाग्रता में वृद्धि होती है| अगर आप भी चाहते हैं कि आपका बच्चा पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करें और अच्छा इंसान भी बने, तो बच्चे में जन्म के बाद से ही संगीत के संस्कार डाल दे| संगीत से सुनने, समझने और सीखने की शक्ति बढ़ती है, जिससे  वरबल आईक्यू, स्मरण शक्ति में तेजी आती है|
 किन रागों से रोगों का इलाज
1.ह्रदय रोग दरबारी, सारंग
2.अस्थमा मालकोश, ललित
3.ब्लड प्रेशर भैरवी, भूपाली
4.एसिडिटी - खमाज
5.अनिद्रा भैरवी, सोहनी
6.डिप्रेशन बिहाग, मधुवंती
7. कमजोरी - जेजेवंती
8.खून की कमी - पीलू
9.याददाश्त - शिवरंजनी
10.सिरदर्द भैरव|

आज महिलाएं सिर्फ पत्नी या मां ही नहीं , बल्कि एक बेटी की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं | अपने पैरों पर खड़े होना महिलाओं को एक प्रकार की स...


आज महिलाएं सिर्फ पत्नी या मां ही नहीं, बल्कि एक बेटी की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं | अपने पैरों पर खड़े होना महिलाओं को एक प्रकार की स्वतंत्रता का एहसास कराता है, जिसे पाकर वे काफी खुशी महसूस करती हैं| लेकिन आपकी जिम्मेदारी सिर्फ आज को नहीं , बल्कि कल को भी बेहतर बनाने की है, जिसके लिए बचत बहुत जरूरी है
आत्मनिर्भरता की तरफ एक कदम
एक शोध में पाया गया कि 'आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता' भारतीय महिलाओं के लिए खुशी के शीर्ष पांच मुख्य कारकों में से एक हैं| वहीं किसी से पूछे बिना अपनी निजी इच्छाओं पर खर्च करने वाली 76 फ़ीसदी महिलाएं खुश थी|  यह शोध बताता है कि महिलाएं आर्थिक स्वतंत्रता से काफी खुशी महसूस करती हैं| साथ ही यह उनकी खुद की पहचान और संतुष्टि के स्तर को निर्धारित करने में बड़ी भूमिका निभाता है|
 बचत अपने और अपनों के नाम
 आज महिलाएं अपने खुद के उपक्रम स्थापित करती जा रही हैं | शोध से पता चला है कि 70 फ़ीसदी महिलाएं अपने पति के साथ अपनी वित्तीय मामलों की चर्चा करती हैं और 91 फ़ीसदी महिलाएं महिलाओं के खुद के बैंक खाते हैं | लेकिन सिर्फ बैंक में खाता होना ही काफी नहीं है , उसमें बचत करना भी जरूरी  है | इस दौरान आपको महंगाई का खास ख्याल रखना होगा , जो आपके बजट के मूल्य को घटा देती हैं| इसलिए हर साल अपनी बचत में 4 फ़ीसदी तक की बढ़ोतरी जरूर करें| कोई जमीन खरीदे, फाइनेंशियल फाइनेंसियल डिपॉजिट्स या फायदेमंद स्टॉक्स में निवेश करें | क्रेडिट कार्ड्स और कर्ज की ईएमआई को जल्द से जल्द खत्म करें, क्योंकि यह आपकी लॉन्ग - टर्म सेविंग्स को खराब करता है |
परिवार के लिए बेहतर जीवन
परिवार में दो आय से एक बेहतर जीवनशैली हासिल की जा सकती है , जो एक की आय से नहीं मिल सकती हैं | चाहे कहीं घूमने जाना हो या फिर बच्चों को बेहतर स्कूल में भेजना या फिर कठिन समय| इसके लिए दोनों को अपनी आय को ठीक प्रकार से नियोजित करना भी सीखना होगा| बचत के लिए पैसे ज्यादा से ज्यादा ब्याज देने वाले अकाउंट में रखें|  हर दिन इसकी जांच करें, क्योंकि यह अवचेतन रूप से आप पर ज्यादा बचत करने के लिए प्रोत्साहित करेगा| इस अकाउंट के लिए कोई कार्ड ना लें , ताकि आप इसे खर्च न कर दें| इसका प्रयोग आप अपने परिवार की बेहतर जीवनशैली के लिए कर सकती हैं|